दोस्तों! ज़ाहिर है कि शिवाजी महाराज का नाम आप सभी ने अवश्य सुना होगा। भारतीय इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाता है। उन्होंने भारत की अखंडता के लिए कई बलिदान दिए हैं। आपने उनके बारे में स्कूल कॉलेज या फिर कही और पढ़ा होगा। लेकिन अगर आपकी जानकारियों में वक़्त की धुंधलाहट आ गई है तो अब वक़्त है उसको मिटाने का। इस आर्टिकल में आप शिवाजी महाराज के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे। तो आइये शुरू करते हैं शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi):
छत्रपति शिवाजी महाराज कौन थे? (Chhatrapati Shivaji Maharaj Kaun The)
भारत की इस पावन धरती पर कई महान राजा और राजनयिक हुए हैं, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए हँसते-हँसते अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। परन्तु जब भी कभी पराक्रमी हिन्दू मराठा राजाओं की बात होती है, तो वीर शिवाजी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। लोगों ने अपनी-अपनी कल्पना के हिसाब से इनकी अलग-अलग छवि बनाई है। परन्तु हम उन्हें भारतीय गणराज्य के महा नायक के रूप में जानते हैं।
शिवाजी एक कुशल रणनीतिकार थे, जिन्होंने 1674 ई. के लगभग पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी। शिवाजी ने भारत को मुगलों की अधीनता से आज़ाद करवाने के लिए कई लड़ाइयां लड़ी और भारत में ढ़लती भारतीय और मराठा संस्कृति को एक नई दिशा प्रदान की। उनकी युद्ध प्रणालियाँ अद्वितीय थी और आज भी उसे लोगों द्वारा अपनाया जाता है।
महाराष्ट्र के ये राजा बेहद कुशल, दयालु, बहादुर, निडर, और बुद्धिमानी होने के साथ-साथ बहुमुखी प्रतिभा के धनी भी थे। इसके साथ ही वे बहुत धार्मिक भी थे और बचपन से ही रामायण और महाभारत के अभ्यास में उनकी बहुत रुचि थी। आइये अब शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) और उनकी सम्पूर्ण जीवनी पर एक नज़र डालते हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास (History of Shivaji Maharaj in Hindi)
#1. छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म और प्रारंभिक दिन (Birth and Early Days of Shivaji Maharaj)
शिवाजी महाराज का पूरा नाम शिवाजी शाहजीराजे भोसले था। उनका जन्म 19 फरवरी 1630 को पुणे जिले (महाराष्ट्र) के जुन्नर गाँव के शिवनेरी किले में हुआ था। शिवाजी की माता जीजाबाई और पिता का नाम शाहजीराजे भोसले था। उनकी माँ जीजाबाई सिंदखेड के लखुजी जाधवराव की बेटी थीं, वो बहुत असाधारण और बहादुर महिला थीं।
उनके पिता शाहजी राजे बीजापुर के सुलतान की सेना में सेनापति होने के साथ-साथ एक महान सामंत भी थे। शिवाजी के बड़े भाई शम्भाजी थे अधिकतर समय अपने पिता के साथ रहते थे। शिवाजी का नाम उनकी माता ने अपनी भगवान शिवाय के प्रति अनन्य भक्ति के चलते रखा था।
महाराज शिवाजी का बचपन उनकी माँ की छत्रछाया और मार्गदर्शन में बीता। उनके व्यक्तित्व पर उनकी माँ का बहुत प्रभाव था। माता जीजाबाई उन्हें धर्म से सम्बंधित और युद्ध कौशल की कहानियाँ सुनातीं थीं। वे उन्हें हिन्दू धर्म के महान ग्रंथों जैसे रामायण महाभारत के बारे में भी बताती थीं, जिससे वो बहुत प्रभावित होते थे। अपनी माँ द्वारा समझे हुई शिक्षा को आधार मानकर उन्होंने अपने पूरे जीवन की दिशा निर्धारित की थी।
इसी दौरान शाहजीराजे अपनी पत्नी जीजाबाई और पुत्र शिवाजी की ज़िम्मेदारी दादोजी कोंडदेव को सौंपकर कर्नाटक चले गए थे। दादोजी ने शिवाजी को युद्ध कला यानी निशानेबाज़ी, तलवारबाज़ी, और घुड़सवारी की तकनीकें सिखाईं थी। साथ ही शिवाजी महाराज को संस्कृति और राजनीति की भी उचित शिक्षा दिलाई गई थी।
आइए जानें शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) में क्या कुछ है ।
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#2. छत्रपति शिवाजी महाराज बचपन में खेलते थे किला जीतने का खेल
शिवाजी बचपन में अपने मित्रों के साथ युद्ध करके किला जीतने का खेल खेला करते थे। जैसे-जैसे शिवाजी बड़े होते गए उनका खेल वास्तविक रूप लेता गया। उनके कन्धों पर हिन्दू और मराठा साम्राज्य को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारियाँ आ गईं। समय के साथ उनकी बुद्धिमानी और चतुराई भी बढ़ती चली गई। किलों का कांसेप्ट भारत में मुगलों ने शुरू किया था और शिवाजी ने समझ लिया था कि अगर भारत को मुगलों के चंगुल से आज़ाद करवाना है तो पहले किलों पर फ़तेह हासिल करनी होगी। उन्होंने शुरुआत में मावल क्षेत्र के योद्धाओं की मदद से अपनी सेना बनाई और बहुत सी लड़ाइयाँ जीतीं।
अब शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) में आगे पढ़ते हैं ।
#3. छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह, हिन्दवी स्वराज की स्थापना, और उनकी किलों पर फ़तेह
शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) हर देश भक्त को अवश्य पढ़ना चाहिए और उनके जीवन से शिक्षा ग्रहण करना चाहिए । अब पढ़ते हैं शिवाजी के विवाह के साथ हिंदवी स्वराज की स्थापना और उनके किलों पर फ़तेह की कहानी।
1640 ई. में निम्बालकर परिवार की साईबाई से शिवाजी महाराज का विवाह हुआ। उसके बाद 1645 में शिवाजी द्वारा ‘हिन्दवी स्वराज’ की विचारधारा प्रस्तुत की। हिन्दवी स्वराज का मतलब है कि विदेशियों की सत्ता को समाप्त करके स्वशासन की स्थापना करना। 1645 ई. से 1648 ई. के बीच में शिवाजी ने मुल्ला अहमद की हुकूमत से भिवंडी, कल्याण, ठाणे, कोंढाणा, चाकन, और तोर्ण आदि किलों को छीनकर मराठा साम्राज्य में शामिल कर लिया।
शिवाजी की इन गतिविधिओं के बारे में जब डेक्कन में आदिलशाह को पता चला तो उसने घबराकर छत्रपति के पिता शाहजी भोसले जो उस वक़्त उसके सेनाध्यक्ष थे को 25 जुलाई 1648 में बंदी बना लिया। पिता को बंदी बनाए जाने पर शिवाजी 7 साल तक अपने युद्ध और जीत के कारवां को रोक देते हैं। इस दौरान शिवाजी ने एक मजबूत और विशाल सेना का निर्माण किया और देशमुखों के साथ हाथ मिला लिया।
शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) में अब नया मोड़ लेने जा रहा है।
#4. प्रतापगढ़ का युद्ध (Battle of Pratapgarh)
पिता की मृत्यु के बाद शिवाजी ने फिर से आक्रमण शुरू कर दिए। आदिल शाह को जैसे ही इसकी खबर मिली तो वह आग-बबूला हो गया। इस पर वो 1657 ई. में अपने सबसे बेहतरीन और क्रूर जनरल अफ़ज़ल खान को शिवाजी पर हमला करके उन्हें मारने भेजता है। दोनों की सेनाओं के बीच बहुत दिनों तक घमासान युद्ध हुआ, परन्तु इसका कोई परिणाम नहीं निकला। तब दोनों समझौते के मकसद से प्रतापगढ़ किले के पास एक झोपड़ी में एक निश्चित दिन और वक़्त पर मिलना निश्चित करते हैं।
जब शिवाजी अफ़ज़ल खान से मिलने की तैयारी कर रहे होते हैं तो उनके एक मुस्लिम लेफ्टिनेंट उन्हें सलाह देते है कि अफ़ज़ल खान पर विश्वास करना ठीक नहीं है। लेफ्टिनेंट की बात को तवज्जो देकर शिवाजी अपने कपड़ों के अंदर कवच और नाखूनों पर बाघ नख लगाकर अफजल खान से मिलने जाते हैं। इस बात पर मतभेद है कि जब दोनों प्रतापगढ़ किले में मिलते हैं तो कौन पहले हमला करता है।
परन्तु यहाँ पर शिवाजी अपने बाघ नख की मदद से अफ़ज़ल खान की हत्या कर देते हैं और फिर अपनी सेना को आक्रमण का सिग्नल देते हैं। शिवाजी की सेना ने बीजापुर के 3000 सैनिकों को मार गिराया और अफ़ज़ल खान के 2 पुत्रों को गिरफ्तार कर लिया गया। शिवजी ने बड़ी संख्या में घोड़ों, हथियारों, और बाकी के सभी सैन्य सामानों को अपने अधीन कर लिया। इस तरह 10 नवंबर 1659 में प्रतापगढ़ के युद्ध (Battle of Pratapgarh) में शिवजी की ऐतिहासिक जीत होती है।
आगे बढ़ते हैं छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) में।
#5. पन्हाला किला पर विजय और पावनखिंड का युद्ध (Victory Over Panhala Fort and Battle of Paavankhind)
1659 में शिवाजी की सेना ने कोंकण और कोल्हापुर की तरफ कूच किया और बीजापुरी सेना को हराकर पन्हाला के किले पर फ़तेह हासिल कर ली थी। परन्तु 1660 में आदिलशाही सेना के सिद्दी मसूद के नेतृत्व और अंग्रेज़ों और मुगलों की मदद से उन्होंने शिवाजी की सेना को पन्हाला किले से बाहर खदेड़ दिया। इसी के चलते 1663 में पावनखिंड का युद्ध लड़ा गया था। अपनी लगातार कोशिशों के बाद शिवाजी की सेना आखिरकार 1673 में किले को वापस हथियाने में कामयाब हो गई थी।
शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) में आगे पढ़ेंगे मुग़लों के साथ उनके युद्ध की कहानी।
#6. छत्रपति शिवाजी महाराज का शाइस्ता ख़ाँ पर हमला (Battle With Mughals)
शिवाजी की लगातार जीत के बारे में सुनकर मुग़ल शासक औरंगज़ेब विचलित हो जाता है। वो बहुत बार शिवाजी को समझौते पत्र, तोहफे, आदि भेजता है, परन्तु शिवाजी मुग़लों के खिलाफ रहने का फैसला करते हैं। तब 1660 में औरंगज़ेब अपने मामा शाइस्ता खान को शिवाजी से युद्ध के लिए भेजते हैं। शाईश्ता खान अपने 80000 सैन्यदल, और बीजापुर के सिद्दी जौहर की सेना और अंग्रेज़ों की मदद से पुणे से शिवाजी राव और उनकी सेना को खदेड़ने में कामयाब हो जाते हैं।
परन्तु 1663 में शिवाजी वापस आते हैं और शाईश्ता खान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक छेड़ देते हैं। शाईश्ता खान मुग़ल सेना के साथ वहाँ से भागने में कामयाब हो जाता है, परन्तु उसकी तीन उँगलियाँ कट जाती हैं। इस तरह से शिवाजी महाराज पुणे में वापस अपना प्रभुत्व वापस हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं।
आइए जानते हैं आगे शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) में क्या होता है।
#7. पुरंदर की संधि (Treaty of Purandar)
मामा शाईश्ता खान की शिवाजी से हार के बाद औरंगज़ेब राजा जय सिंह को शिवाजी के पास भेजते हैं। राजा जयसिंह 15000 सैन्य बलों के साथ शिवाजी के पुरंदर के किले को पूरी तरह से घेर लेते हैं। तब शिवाजी को सरेंडर करना पड़ता है और दोनों के बीच पुरंदर की संधि होती है। इस पर शिवाजी महाराज अपनी शर्तों के साथ मुग़लों से हाथ मिलाने के लिए हामी भर देते हैं।
आगे शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) में होने जा रही है शिवाजी की औरंगज़ेब से मुलाकात।
#8. छत्रपति शिवाजी महाराज की आगरा मुहिम (Meeting With Aurangzeb)
पुरंदर की संधि के आधार पर शिवाजी अपने 9 साल के बेटे संभाजी के साथ 12 मई 1666 को औरंगज़ेब से मिलने आगरा गए। परन्तु औरंगज़ेब की चाल के मुताबिक़ शिवाजी महाराज का उसके दरबार में बहुत अपमान हुआ। किसी ने भी उनको पहचाना नहीं और उन्हें मनसबदारों के पीछे खड़ा कर दिया। इस पर शिवजी गुस्से में आग बबूला होकर बाहर चले गए, और औरंगज़ेब यही चाहता था।
इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप औरंगज़ेब ने शिवाजी महाराज को आगरा में नज़रबंद कर दिया। परन्तु अपनी कुशलता और चतुराई से शिवाजी वहाँ से भागने में कामयाब हो गए। फिर 3 साल शांति बनाये रखने के बाद 1970 में शिवाजी ने फिर से मुग़लों और अंग्रेज़ों के क्षेत्रों पर हमला करके उन्हें हथियाने शुरू कर दिया।
ये था शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) में अब तक की कहानी। अब शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) में होने जा रहा है उनका राज्याभिषेक।
#9. छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक (Coronation of Shivaji)
6 जून 1674 को रायगढ़ में शिवाजी का भव्य राज्याभिषेक हुआ था। इस दिन उन्हें छत्रपति की उपाधि दी गई थी। पहले इसमें लोगों में बहुत विरोधाभास हुआ था कि शिवाजी क्षत्रिय की पदवी के लायक नहीं हैं, क्योंकि वो एक किसान के परिवार से थे। परन्तु बाद में सबने एकमत होकर शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक करवाया। इस उत्सव के लिए रायगढ़ में 5000 के लगभग लोग इकट्ठे हुए थे और उन्हें तीन उपाधियों से नवाज़ा गया था:
छत्रपति (सारी दिशाओं का राजा), शककर्ता (एक युग के संस्थापक), और हैंडवा धर्मोद्धारक (हिन्दू धर्म के रक्षक) | वाराणसी के ब्राह्मण गागाभट्ट ने सात नदियों का पवित्र जल एक सोने के लोटे में भरकर शिवाजी का राज्याभिषेक करते हैं।
शिवाजी के राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही 18 जून 1674 को उनकी माता जीजाबाई की मृत्यु हो गई थी। इसलिए 4 अक्टूबर 1674 को फिर से उनका राज्याभिषेक किया गया, जिसमें हिन्दू स्वराज्य स्थापना की उद्घोषणा की गई थी।
पढ़िए शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) में आगे की कहानी।
#10. छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के पल (Last Moments of Shivaji and His Death)
पूरे भारत में अपने नाम का बोलबाला करने के बाद 3 अप्रैल, 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गई थी। वैसे तो आम मान्यता के अनुसार उनकी मृत्यु का कारण लम्बे समय से चल रहे तेज़ बुखार को माना जाता है। परन्तु अलग-अलग लोग इसके बारे में अलग-अलग बातें भी करते हैं। कुछ लोग बोलते हैं कि सोयराबाई ने अपने बेटे राजाराम को राजगद्दी दिलाने के लिए उन्हें ज़हर दे दिया था। तो वहीं कुछ लोग ये भी बोलते हैं कि उनके सैनिकों ने ही उनके खिलाफ साज़िश करके उनकी हत्या कर दी थी।
ये थी शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) की सम्पूर्ण कहानी।
दोस्तों आशा है कि आपको शिवाजी महाराज का इतिहास (history of Shivaji Maharaj in hindi) को पढ़कर अच्छा लगा होगा। इसी तरह से अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें।
Frequently Asked Questions
Question 1: भारतीय नौसेना के पिता (Father of Indian Navy) कौन हैं ?
शिवाजी को समुंदरों से बहुत अधिक लगाव था, इसीलिए उनको भारतीय नौसेना के पिता/ पितामह भी कहा जाता है। उनके पास 400 से ज़्यादा समुद्री जहाज थे। उन्होंने अपनी खुदकी नौसेना बना ली थी।
Question 2: अष्टप्रधान की स्थापना किसने किया था? इसमें कौन-कौन शामिल हैं ?
छत्रपति शिवाजी महाराज ने अष्टप्रधान की स्थापना की थी। अष्टप्रधान का मतलब है आठ मंत्रियों का परिषद जिसमें कुल आठ लोग होते थे। शिवाजी के अष्टप्रधान कुछ इस प्रकार से थे: पेशवा, सेनापति, न्यायाधीश, मजूमदार, पंत सचिव, मंत्री, और दंडाध्यक्ष।
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