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भगवान परशुराम कौन थे और क्या है उनका इतिहास

parshuram ji kaun the

दोस्तों भगवान परशुराम की वीरता और शौर्य की गाथा हमें ऐतिहासिक कहानियों और तथ्यों से भली भांति मिलता है। भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में इनका पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। इनके अवतार का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी से पाप और बुराइयों का नाश करना है। हिन्दुओं के दोनों महान ग्रंथों रामायण और महाभारत में परशुराम जी का वर्णन मिलता है।

ऐसी मान्यता है कि श्री परशुराम भगवान चिरंजीवी हैं और कलियुग में भी एक जीवित देवता हैं, इसलिए इनकी पूजा नहीं की जाती है। कलियुग में कल्कि भगवान को शिक्षा और मार्गदर्शन प्रदान करने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका दर्शाई गई है। परशुराम जी के जीवन की ऐसी कुछ रोचक बातों को हम आप सभी के साथ साझा करने जा रहे हैं । आइए हम आपको इस लेख के माध्यम से बताते हैं कि आखिर परशुराम कौन थे (parshuram ji kaun the)|

तो शुरू करते हैं परशुराम कौन थे (parshuram ji kaun the) पर हमारा यह ज्ञानवर्धक लेख.. 

 

परशुराम कौन थे? (Parshuram Ji Kaun The)

Parshuram Ji Kaun The

तो दोस्तों परशुराम कौन थे (parshuram ji kaun the), जानते हैं इस सवाल का जवाब;

परशुराम जी के अवतरण युग के पीछे कुछ अलग-अलग भ्रांतियाँ और मान्यताएं है। परंतु हम ऐसा कह सकते हैं की उन्होंने रामायण काल के दौरान अर्थात त्रेता युग में अवतार लिया था। उनका जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में स्थित मानपुर गाँव के जानापाव पर्वत में। परशुराम सप्तर्षियों में से एक जमदाग्नि एवं उनकी पत्नी रेणुका के पांचवे पुत्र थे। राम भगवान की तरह परशुराम जी को भी भगवान श्री हरि विष्णु का अवतार माना जाता है। वे जन्म से ही अत्यंत बहादुर, शूरवीर, और कर्तव्यनिष्ठ आचरण के थे । 

परशुराम का शाब्दिक अर्थ (Parshuram Story In Hindi)

परशुराम नाम दो शब्दों से मिलकर बना है ‘परशु’ अर्थात कुल्हाड़ी और ‘राम’, जिसका शाब्दिक अर्थ है, कुल्हाड़ी के साथ राम। महाभारत और विष्णु पुराण के अनुसार परशुराम जी का मूल नाम राम था, परन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया, तो उनका नाम परशुराम हो गया। इन्हे श्री राम की तरह ही वीरता का प्रतीक माना जाता है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार परशुराम जी भी अमर हैं और आज भी पृथ्वी पर निवास करते हैं। 

श्री परशुराम भगवान के अन्य नामों में सम्मिलित हैं: जमदग्न्य यानी जमदग्नि के पुत्र, भृगुवंशी यानी ऋषि भृगु के वंशज, भृगुपति, भार्गव, और रामभद्र। 

परशुराम कौन थे (parshuram ji kaun the) में आगे जानें भगवान परशुराम जी का इतिहास। 

 

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परशुराम का इतिहास (History of Parshuram in Hindi)

Parshuram Ji Kaun The - History of Parshuram in Hindi

आइए जानते हैं परशुराम कौन थे (parshuram ji kaun the) और क्या है भगवान परशुराम जी का इतिहास:

माता पिता के लिए समर्पण की कहानी

वे अपने माता पिता के प्रति बहुत अधिक समर्पित थे। एक बार की बात है, उनकी माता रेणुका गंगा नदी के तट पर हवन के लिए जल लेने गईं थीं। वहाँ पर गंधर्वराज चित्रसेन को अप्सराओं के साथ विहार और मनोरंजन करते देख वे मंत्रमुग्ध हो गईं।

इस प्रकार उन्हें आश्रम पहुँचने में बहुत देर हो गई। ऋषि जमदग्नि ने अपनी दिव्य दृष्टि से माता रेणुका के देरी से आने की वजह का पता लगा लिया। देर से आने के लिए देवी रेणुका की अनुचित मनोवृत्ति जान क्रोधवश ऋषिश्रेष्ठ ने सभी पुत्रों को बुलाया और माता का वध करने का आदेश दे दिया। उनके बाकी के पुत्रों ने माँ के लाडवश पिता की आज्ञा का पालन करने से इंकार कर दिया। जमदग्नि ने  सभी पुत्रों को अवज्ञा करने पर पत्थर बना दिया। 

जब परशुराम जी की बारी आई तो उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन कर माँ का सर धड़ से अलग कर दिया। इस पर ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र परशुराम से बहुत प्रसन्न हुए और मनचाहा वर मांगने के लिए कहा। परशुराम जी ने वरदान स्वरूप अपने सभी भाइयों और माता को पुनर्जीवित करने को कहा। ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र के कर्तव्यपरायणता से इतने प्रसन्न थे कि उन्होंने उनकी इच्छा पूरी कर पत्नी रेणुका सहित बाकी चारों पुत्रों को जीवित कर दिया। इस प्रकार परशुराम जी ने अपने पिता और माता दोनों के लिए अपने कर्तव्य, प्रेम, और समर्पण का पालन किया। 

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पिता के वध का प्रतिशोध

हैहय क्षत्रिय वंश के अधिपति सहस्त्रार्जुन ने भगवान नारायण के अंशावतार दत्तात्रेय को कठिन तपस्या कर प्रसन्न कर लिया था। वह दत्तात्रेय से से सैंकड़ों भुजाओं और कभी पराजित ना होने का वरदान पाकर घमंड में चूर हो गया था। एक बार वह वन में आखेट करते हुए ऋषि जमदग्नि के आश्रम जा पहुँचा। वहाँ मिले आदर सत्कार और खातिरदारी को देख वह बहुत प्रफुल्लित हो उठा।

जब उसने यह पाया कि इन सब का कारण कामधेनु गाय है तो वह कामधेनु गाय को बलपूर्वक ऋषि जमदग्नि के आश्रम से छीनकर ले गया। जब परशुराम जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने क्रोधवश फरसा अस्त्र से प्रहार कर सहस्त्रार्जुन की सारी भुजाएं काट दी। 

तत्पश्चात सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम जी की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदाग्नि की हत्या कर दी। तब परशुराम जी ने प्रतिज्ञा ली और 21 बार इस पृथ्वी से हैहय वंशीय क्षत्रियों का विनाश कर दिया। उन्होंने लगभग सारी पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर ली थी। अंत में उन्होंने पूरा साम्राज्य ऋषि कश्यप को सौंप दिया और स्वयं महेन्द्रगिरि पर्वत पर जाकर घोर तप में लीन हो गए।  

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परशुराम के गुरु कौन थे? (Parshuram Ke Guru Kaun The)

Parshuram Ji Kaun The - Parshuram Ke Guru Kaun The

क्या आप जानते हैं भगवान परशुराम जी के गुरु कौन थे? आइए हम आपको बताते हैं;

परशुराम जी के गुरु स्वयं महादेव शंकर थे। वे भगवान शंकर के परम भक्त थे और उन्होंने शंकर जी को तप से प्रसन्न कर उनसे शास्त्रों और युद्ध कौशल की शिक्षा प्राप्त की थी। भगवान शिव के द्वारा ही परशुराम जी को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त है। उनके चिरंजीवी कहलाने का यही कारण है । 

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परशुराम जी के अस्त्र

परशुराम जी युद्धकला में निपुण थे। उनका मुख्य अस्त्र कुल्हाड़ी माना जाता है, जो उन्हें शिवजी की कठिन तपस्या करके प्राप्त हुआ था। उनके कुल्हाड़ी अस्त्र को परशु या फिर फरसा नाम से भी पुकारते हैं। उनके धनुष कमान का नाम विजय था। ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी पर रावण पुत्र इंद्रजीत के अलावा पृथ्वी पर सिर्फ परशुराम जी के पास सबसे शक्तिशाली और अद्वितीय अस्त्र पशुपत, वैष्णव, और ब्रह्मांड अस्त्र थे। शिवजी ने उन्हें कठिन युद्धकला कलारीपयाट्टू की शिक्षा प्रदान भी की थी। 

 

परशुराम रामायण (Parshuram Ramayan)

Parshuram Ji Kaun The - Parshuram Ramayan

समझते हैं रामायण में परशुराम कौन थे (parshuram ji kaun the); रामायण काल के दौरान परशुराम जी की भूमिका का पता इस कथा से लगता है:

जब राम भगवान ने सीता जी के स्वयंवर में पहुँच कर भगवान शंकर का धनुष तोड़ा था, तो उसकी गर्जना सुन परशुराम जी वहाँ पहुँच गए। उन्होंने अत्यंत क्रोधित होकर श्री राम को चुनौती दे दी और लक्ष्मण जी के साथ बहुत बहस की। परन्तु जब उन्हें एहसास हुआ कि श्री राम और कोई नहीं बल्कि भगवान विष्णु का अवतार हैं, तो उन्होंने स्वयं ही समर्पण कर दिया। उसके पश्चात् वे पुनः महेन्द्रगिरि पर्वत में जाकर तपस्या करने लगे। 

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परशुराम महाभारत (Parshuram Mahabharat)

Parshuram Ji Kaun The - Parshuram Mahabharat

समझते हैं महाभारत में परशुराम कौन थे (parshuram ji kaun the); महाभारत काल में परशुराम जी की भूमिका के बारे में इन तथ्यों और कहानियों द्वारा पता लगाया जा सकता है:

महाभारत के युद्ध के कई महान योद्धाओं को परशुराम जी ने अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्रदान की थी। उन महारथियों में सूर्यपुत्र कर्ण, पितामह भीष्म, और गुरु द्रोणाचार्य  शामिल हैं । 

कर्ण ने परशुराम भगवान से शिक्षा प्राप्त करने के लिए झूठ का सहारा लिया था। इस बात का पता चलने पर परशुराम जी अत्यधिक क्रोधित हो गए थे। क्रोधवश उन्होंने कर्ण को श्राप दे दिया कि जब कभी भी उन्हें अपनी विद्या कि सबसे ज़्यादा ज़रूरत पड़ेगी तो वो उसे पूरी तरह से भूल जायेंगे। 

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वहीं दूसरी और परशुराम जी का अपने दूसरे शिष्य और महाभारत के महान योद्धा भीष्म के साथ प्रलयंकारी युद्ध हुआ था। इस युद्ध का कारण भीष्म पितामह की आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा थी। परशुराम काशी की राजकुमारी अम्बा को न्याय दिलाना चाहते थे। यह युद्ध 23 दिनों तक चला था, परन्तु इसका कोई निर्णय नहीं निकला था। अंत में इंद्र सहित सभी देवताओं के अनुरोध पर युद्ध रोक दिया गया था। 

तो दोस्तों हमने परशुराम कौन थे (parshuram ji kaun the) लेख के माध्यम से देखा कि किस प्रकार से भगवान परशुराम का भगवान श्री राम और श्री कृष्ण दोनों के समय में महत्वपूर्ण स्थान था। यही नहीं परशुराम जी की कलयुग में भी विशेष भूमिका देखी जाएगी। वो विष्णु भगवान के दसवें और अंतिम अवतार “कल्कि” के गुरु की भूमिका निभाएंगे। 

दोस्तों हमने परशुराम कौन थे (parshuram ji kaun the) लेख के माध्यम से परशुराम भगवान की सम्पूर्ण जीवनी का संक्षिप्त में आप सभी के लिए विवरण किया। आशा है कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। 

 

Frequently Asked Questions

Question 1: परशुराम की पूजा क्यूँ नहीं की जाती?

हिन्दू शस्त्रों और मान्यताओं के अनुसार परशुराम एक जीवंत भगवान हैं, और वो आज भी पृथ्वी पर रहते हैं। यही कारण है कि अन्य देवताओं की तरह परशुराम जी की पूजा नहीं की जाती।

Question 2: भगवान परशुराम कौन थे (parshuram ji kaun the)?

भगवान परशुराम कौन थे (parshuram ji kaun the) का सरल उत्तर यह है कि वे विष्णु जी के छठे अवतार माने जाते हैं ।

Question 3 : क्या परशुराम ब्राह्मण थे ?

परशुराम जी जन्म और कुल से ब्राह्मण थे, परंतु वे अन्य ब्राह्मणों से अलग थे। उनके पास क्षत्रियों वाले भी सारे गुण थे, जैसे युद्धकौशल, वीरता, शौर्य, पराक्रम, आदि। इसीलिए उन्हें ब्रम्ह-क्षत्रिय माना जाता है ।

Question 4: परशुराम जयंती कब मनाई जाती है ?

परशुराम जी का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। इसीलिए प्रतिवर्ष इसी दिन इनका जन्मोत्सव या जयंती मनाई जाती है। इस दिन को अक्षय तृतीया भी बोल जाता है।

 

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